अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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पुस्तक समीक्षा


बिपिन कुमार शर्मा

"भाईयों एवं बहनों, सावधान हत्यारों ने फिर उसी ज़बान में बोलना शुरू कर दिया है, जिसमें हमारी आपकी माँओं की लोरियों की गंध है और जो हमें बेहद पसंद है. साथियों, ये वे लोग हैं जो अघाये हुये हैं और जिनकी कल की रोटी सुरक्षित है. इन्हें पहचानिये! ये हमें तोड़ फ़ोड़कर, झूठे भ्रम फ़ैलाकर, नकारा कर देना चाहते हैं? सोचिये हमें क्या मिला है. इनकी मीठी भाषा से, इनके लुभावने नारों से. पहचानिये उन मुहावरों को, जो आज़ादी और ......
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